डाकिया
चिट्ठियां ज़िन्दगी के पते पर......
शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
साया....
लो शाम भी फिसल रही है दिन के हाथ से
साये भी घुस गए हैं दरख्तों के जिस्म में..
ढँक जाएगी जमीन भी अपने ही साये से,
मेरे भी जिस्म में कोई साया है इन दिनों
साया, जो मेरी रूह को बेचैन किये है..
कब से खड़ा हूँ मैं इसी साये की धूप में...
2 टिप्पणियां:
Udan Tashtari
ने कहा…
बहुत बेहतरीन!!
30 जुलाई 2010 को 4:14 pm बजे
Dankiya
ने कहा…
dua hai..aapki!!
31 जुलाई 2010 को 12:06 am बजे
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2 टिप्पणियां:
बहुत बेहतरीन!!
dua hai..aapki!!
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