`पूरा दिन यूंही गुज़ारा था निर्जला तुमने...
हंसके डिब्बे में रखी थी परमल...फेवरेट थी मेरी
मैंने ऑफिस में उड़ाई थी पराठों के संग,
तुमने एक दिन में ही जन्मों का सूखा काटा था...
औंधी दोपहरी कहीं टांग दी थी खूँटी से....
और फिर रात को पीले मकान की छत पर...
चाँद दो घंटे लेट था शायद..
चांदनी छानकर पिलाई थी...
पूरा दिन यूंही गुज़ारा था निर्जला तुमने...
आज भी रक्खा है वो दिन...मेरे सिरहाने कहीं...
हंसके डिब्बे में रखी थी परमल...फेवरेट थी मेरी
मैंने ऑफिस में उड़ाई थी पराठों के संग,
तुमने एक दिन में ही जन्मों का सूखा काटा था...
औंधी दोपहरी कहीं टांग दी थी खूँटी से....
और फिर रात को पीले मकान की छत पर...
चाँद दो घंटे लेट था शायद..
चांदनी छानकर पिलाई थी...
पूरा दिन यूंही गुज़ारा था निर्जला तुमने...
आज भी रक्खा है वो दिन...मेरे सिरहाने कहीं...