जब मेरी बेजुबान आँखों पर,
तुमने रक्खे थे अजनबी अल्फाज़
और मेरी खामोश पलकों पर,
एक आवाज़ छलछलाई थी..
अपने हाथों की कुछ की कुछ लकीरें भी,
छोड़ आयीं थीं मेरे हाथों में...
राह में, साहिलों पे गलियों में,
ढूंढ़ता हूँ वो हमज़बाँ नज़रें..
रात-बेरात अब मेरी आँखें
नींद में रोज़ बडबड़ाती हैं...