साथ मेरे आज रस्ता चल रहा है,
कल इन्हीं पैरों तले दल-दल रहा है..
बांध ले फिर से उड़ानें पंख में तू,
फिर तेरा उड़ना किसी को खल रहा है..
लकड़ियाँ लेने गयी थी माँ ना लौटी..
पेट का चूल्हा तौ कबसे जल रहा है
आज तक वो सीख ना पाया बरसना
जिसकी आंखोंमें कोई बादल रहा है
गम ना कर होगी यहीं पर एक सुबह भी,
गर तेरा सूरज कहीं पे ढल रहा है..
होंसले चुगते हैं गर मेहनत का दाना
ये समझ लो ख्वाब कोई पल रहा है...
सोमवार, 23 अगस्त 2010
रविवार, 22 अगस्त 2010
याद आयीं बचपन की बातें..........
चूल्हे और आँगन की बातें
याद आयीं बचपन की बातें
तेरा मिलना इस जीवन में,
जेसे दूर गगन की बातें
भल-भल आंसू भेज रहा है,
जो करता दामन की बातें
भूके पेट की प्रहारिक किश्तें,
आँखों से बर्तन की बातें
फिरकी, लट्टू, बन्दर भालू,
सबसे अपनेपन की बातें
आँखों में मेंहदी रच जाये,
हाथों में जब खनकी बातें
जीना मुश्किल हो जायेगा,
मत समझो जीवन की बातें
याद आयीं बचपन की बातें
तेरा मिलना इस जीवन में,
जेसे दूर गगन की बातें
भल-भल आंसू भेज रहा है,
जो करता दामन की बातें
भूके पेट की प्रहारिक किश्तें,
आँखों से बर्तन की बातें
फिरकी, लट्टू, बन्दर भालू,
सबसे अपनेपन की बातें
आँखों में मेंहदी रच जाये,
हाथों में जब खनकी बातें
जीना मुश्किल हो जायेगा,
मत समझो जीवन की बातें
शनिवार, 14 अगस्त 2010
मुझे आज़ाद कहते हो.....
न पढने की है आजादी, न हाथों में खिलौने हैं....
मेरे सपनों में आती है तौ बस एक वक़्त की रोटी....
मेरा बचपन भटकता है,कहीं गलियों में सड़कों पे
मुझे आज़ाद कहते हो.....
कहीं है होटलों में ज़िन्दगी टेबल से टेबल की
कहीं कचरे के डिब्बों में,उतरता,बीनता खुशियाँ
मेरी हर एक तमन्ना क़ैद है मेरी ही आँखों में
मुझे आज़ाद कहते हो.....
सोमवार, 9 अगस्त 2010
तमन्ना
बेखबर इस बात से सब,कौन सा रास्ता है किसका
बस चले जाते हैं थामे,हाथ में हसरत की झोली
छोड़ देने की ख़ुशी का है नहीं एहसास शायद
इसलिए ख्वाहिश, तमन्ना दर-ब- दर भटका रही है...
दिन फिसलता जा रहा है,मुट्ठियों से रेत जेसा
रात की कालिख निकलकर, आंसुओं में बह गयी है..
जाने कब से हम भी पत्थर की कतारों में खड़े हैं.....
बस चले जाते हैं थामे,हाथ में हसरत की झोली
छोड़ देने की ख़ुशी का है नहीं एहसास शायद
इसलिए ख्वाहिश, तमन्ना दर-ब- दर भटका रही है...
दिन फिसलता जा रहा है,मुट्ठियों से रेत जेसा
रात की कालिख निकलकर, आंसुओं में बह गयी है..
जाने कब से हम भी पत्थर की कतारों में खड़े हैं.....
मंगलवार, 3 अगस्त 2010
ज़िन्दगी...
वक़्त बिगड़े हुए हालात बदल ही देता
कुछ एक ख्वाब को ताबीर मिल गयी होती...
दर्द उठ-उठके बिखर जाता रास्तों में कहीं
फासले बढ़के कोई सिलसिला बना देते,
अश्क आँखों के कोई फूल खिला ही देते
सख्त राहों से ही निकल आती,
नर्म पगडण्डी कोई खुशियों की
दिल के टूटे हुए टुकड़ों से कही
कोई तखलीक हो गयी होती....
तुम जो घबराके और झुंझलाके
राह काँटों की छोड़ आये हो...
ये राह ज़िन्दगी से मिलती है....
कुछ एक ख्वाब को ताबीर मिल गयी होती...
दर्द उठ-उठके बिखर जाता रास्तों में कहीं
फासले बढ़के कोई सिलसिला बना देते,
अश्क आँखों के कोई फूल खिला ही देते
सख्त राहों से ही निकल आती,
नर्म पगडण्डी कोई खुशियों की
दिल के टूटे हुए टुकड़ों से कही
कोई तखलीक हो गयी होती....
तुम जो घबराके और झुंझलाके
राह काँटों की छोड़ आये हो...
ये राह ज़िन्दगी से मिलती है....
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