भयानक ख्वाब से डरकर उठा हूँ रात के घर में
हकीकत दर्द बनकर फिर मेरे ख्वाबों में आई है
छुड़ाकर नींद की ज़ंजीर उठकर बैठ जाता हूँ
निकलकर आँख मेरी फिर उनींदे से झरोखे से
गुज़रती ट्रेन की सीटी की आवाजें पकडती है..
अजब सा ख्वाब था एकदम नहीं कुछ याद तौ लेकिन
किसी एक जुर्म की मुझको मिली है ये सजा जिसमें
मुझे कुछ हसरतें कुछ ख्वाब लेकर फिर से जीना है..
2 टिप्पणियां:
adbhut shabda vyanjana.........meri shubhakamnayaae
dhanywad...
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