डाकिया
चिट्ठियां ज़िन्दगी के पते पर......
रविवार, 4 जुलाई 2010
आसरा...
धूप बहुत है तेज़ रास्ता पथरीला
खाली हाथ सफ़र पे निकले हैं हम तुम....
मेंहेगे दामों बिकती है पेड़ों की छांव...
आओ.. हम तुम मिल जुलकर ऐसा करलें...
तुम मेरे साये में आकर दम ले लो
और तुम्हारे साये में सुस्ता लूं मैं....
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