शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

सपने

सचमुच कितनी देर हो गयी....
जाने क्या-क्या छूट गया है
आँख खुली तौ सूरज शाम की मुट्ठी में है...
पिछली रात को सपने सारे
दस्तक देकर लौट गए हैं....
और मैं अब तक सपने में हूँ