डाकिया
चिट्ठियां ज़िन्दगी के पते पर......
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
सपने
सचमुच कितनी देर हो गयी....
जाने क्या-क्या छूट गया है
आँख खुली तौ सूरज शाम की मुट्ठी में है...
पिछली रात को सपने सारे
दस्तक देकर लौट गए हैं....
और मैं अब तक सपने में हूँ
1 टिप्पणी:
Dankiya
ने कहा…
dhanywad..!!
10 जुलाई 2010 को 3:54 am बजे
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dhanywad..!!
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