गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गोदान

सुबह का चरवाहा सूरज फिर
किरण-किरण चौपाये लेकर
शाम ढले घर लौट रहा है,
हाथ में लेकर धूप की लाठी
ऊंचे टीले पर बैठा है
दूर कहीं तनहा छप्पर में
टीम-टीम करता लालटेन एक
गहरी नींद से जाग रहा है...
प्रेमचंद के धनिया-होरी
रीत रिवाजों के चूल्हे में हक के कंडे झोंक रहे हैं
बूढा और बीमार हाईवे नयी नवेली पगडण्डी से
घर का रस्ता पूछ रहा है................
सुबह का चरवाहा सूरज फिर
ओढ़ के रात का काला कम्बल
कल के सपने पीस रहा है
किरण किरण चौपाये लेकर सूरज फिर गोदान करेगा....

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!

Dankiya ने कहा…

dhanywad sameer ji..!!