अपने माथे से चू रहा हूँ मैं..
एक इक बूँद पसीने की तरह,
बांस की फांस की तरह `खच, से
अपने सीने में धंस गया हूँ मैं..
और लादे सलीब सांसों की...
चुप हूँ, हैरान हूँ, परेशां हूँ ...
तुम ही आकर के अपने आँचल से..
मेरे माथे से पोंछ लो मुझको,
और मुझको निकाल कर मुझसे
दर्द की क़ैद से रिहा कर दो...
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