मंगलवार, 27 जुलाई 2010

बारिश

आज फिर कत्थई झरोखों से
लहलहाता है  बारिशी मंज़र

हर तरफ मुस्कुराते पेड़ों ने
लाल पीले लिबास पहने हैं

रोज़ रह-रहके एक समंदर सा...
ऊंघती वादियों पे गिरता है

सब्ज़ पत्तों पे रीझता मौसम...
एक ही राग गुनगुनाता है  

ऐलबाती की ठंडी बूंदों में
चन्द यादें टपकती रहती हैं.. 

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