रविवार, 30 मई 2010

गवई सा चाँद....

बहुत आवारा कहीं बादलों की गलियों में...
तपिश ज़मीं की सर्द करने को,
रात घिरते ही उतर आता है...
देखता है ज़मीं को छिप-छिपकर ,
मेरे मुनगे का वो गवई सा चाँद....

शनिवार, 22 मई 2010

वृद्धाश्रम


कोई नानी,कोई दादी,कोई माँ और कोई बापू,
सिले कुछ लोरियों के परवरिश के और कुछ बदले,
समेटे झुर्रियों में वक़्त से बिछुड़े हुए लम्हे,
भरे धुंधलाई आंखन में ये ममता के समंदर को,
ज़ुबां की लडखडाहट में दुआ के फूल से झरते,
ये सब अपने ही घर से आंगनों से बेदखल साये,
ये एक छोटे से घर के ख्वाब की ताबीर के सदके.....

बुधवार, 19 मई 2010

मेरे ख्यालों की फ़्रोक पहने
तुम अरगनी से सुखाये कपडे उठा रही  हो 
मैं दूर फाटक की ओट लेकर
तुम्हें निगाहों से छू रहा हूँ
थके हुए साये शाम के सब
दरी पे आकर पसर गए हैं
तुन्हें ये शायद पता नहीं है...
मैं कितनी सदियों से सूने आँगन
की धूप ओढ़े खड़ा हुआ हूँ
मेरे ख्यालों की फ़्रोक पहने
तुम अरगनी से सुखाये कपडे उठा रही हो...

रविवार, 16 मई 2010

आज फिर चाँद सिरा आया हूँ...

शाम के झुटपुटे से ऊगीं हैं...
आज फिर चाँद हसरतें शायद...
आज फिर से मचलके बच्चे ने..
एडियों से ज़मीन खोदी है....
याद है छोटे-छोटे हाथों ने
अपने पंजों पे जब खड़े होकर,
एक गुलदान तोड़ डाला था...
आज भी पीली फ़्रोक में गुडिया

मेरे हाथों की पहुँच के बाहर 
देखकर मुझको मुस्कुराती है....

.......शाम के झुटपुटे से ऊगीं हैं
आज फिर चाँद हसरतें शायद..

..आज फिर चाँद सिरा आया हूँ...
नीले आकाश के समंदर में....

शनिवार, 8 मई 2010

डाकिया: सुनो माँ...

डाकिया: सुनो माँ...

सुनो माँ...

सुनो माँ....मैं तुम्ही से कह रहा हूँ ,सुन रही हो ना,
सभी ये कह रहे हैं तुम गयी हो छोड़कर मुझको,
मगर तुमको मैं अपने पास ही महसूस करता हूँ
मेरे सर पर अभी तक है वही आंचल दुआओं का
मैं जिसके साये में खुदको सदा महफूज़ पाता हूँ,
मैं जब भी सुबह को देहेरी के बाहर,पाँव रखता हूँ
तुम्हारी फिक्र में डूबी हुयी आवाज़ आती है...
`बहुत सर्दी है बेटा लौटकर जल्दी से घर आना,
मैं अब भी लौटता हूँ,देर से घर में थका हारा,
तुम अब भी जागती आँखों से मेरी राह तकती हो,
घुला है कान में अब तक तुम्हारी लोरियों का गुड
तुम्हारे हाथ का काजल,मेरी आँखों में रौशन है
तुम्हारी जागती आँखों तअले थपकी भ री नींदें,
तुम्हारी गोद का बिस्तर, तुम्हारी बांह का तकिया,
तुम्हारे हाथ का हर एक निवाला याद है मुझको...
सुबह से ताप रहा है जिस्म सारा सर से पावों तक,
मेरे माथे पे रक्खा है तुम्हारे लम्स (स्पर्श ) का फाहा..
सुलगता है अभी भी शाम घिरते ही,मेरे मन के..
 किसी छोटे से कोने में तुम्हारी याद का चूल्हा...
तुम्हारे दर्द में किलकारियां मेरी सुलगती हैं..
मेरी आँखों से बहते हैं तुम्हारी आँख के आंसू
सुनो माँ मैं तुम्ही  से कह रहा हूँ सुन रही हो ना....
बहुत सर्दी है माँ तुम लौटकर जल्दी से घर आना......