शनिवार, 25 सितंबर 2010

धूप....

आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
अपने चेहरे के उजालों की तीलियाँ लेकर
लौट आयीं हैं यहाँ सर्द हवाएं फिर से
आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
धूप सुलगा के बैठ जाएँ हम..
ताप लें रूह में जमी यादें
सुखा लें आंसुओं की सीलन को..
आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
धूप सुलगा के बैठ जाएँ हम..
एक रिश्ते की आंच से शायद...
कोई नाराज़ दिन पिघल जाये....

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

गणेश झांकियों की मीठी यादें.....

गणेश झांकियों की मीठी यादें.....
भादो आते ही...बचपन की.बहुत खास भीगी भीगी रातें याद आती हैं...हमारे तरफ की कोलोनीस में...राखी  के बाद से ही गणेश जी की तैयारियां. शुरू हो जाती...चंदे वालों की आवाजाही..और घर वालों की टालमटोल..कल ले लेना, परसों ले लेना......और फिर रसीद कट ही जाती... एक-एक मोहल्ले में तीन-तीन झांकियां...झांकी बनाने में मोहल्ले के कई टेलेंट्स सामने आते..कोई पेंटिंग करता कोई लाइटिंग में उस्तादी दिखाता...फिर रात-रात भर झांकी में पहरेदारों की तरहडयूटी लगती..किसी की प्रसाद वितरण तौ कोई अनुशासन प्रमुख बनकर..दादागिरी दिखाता..ओर्केस्ट्रा,नाटक,अन्ताक्षरी चेअर रेस,मटकी फोड़,के आयोजन..और फिर सबसे बड़ा आकर्षण..
सड़क पर पिक्चर...हम शाम से ही झांकियों में ये जानने निकल  जाते, के आज कहाँ... कौन सी फिल्म दिखाई जाने वाली है....७-८ बजे से शुरू हुआ स्ट्रीट मूवी का सिलिसिला मूंगफली के दानों के साथ देर रात..तक चलता...और रोज़ पिताजी की डांट पर  ख़त्म होता था......

शनिवार, 4 सितंबर 2010

नन्ही मुन्नी एक सुबह को गोद उठाये
घर से उस दिन निकल पड़ा था... बहलाने को...
सारा दिन फिरते-फिरते बहला ना पाया..
शाम ढली तौ गोद से मेरी उतर के उसने
आसमान की थाली से मुट्ठी भर तारे झपट लिए थे...

बुधवार, 1 सितंबर 2010

याद.....

तुम्हारी चुन्नी की कौड़ियाँ
मेरे ख्वाब में खडखड़ा  रही हैं
तुम्हारी आँखों के कुछ सवाल
अब तलक नहीं हल किये हैं मैंने
वो चंद लम्हों की एक जागीर
मैंने दिल में बचा रखी है..
तुम्हारी मौजूदगी का एहसास,
मेरी आँखों में जड़  गया है..
तुम्हारी बातों के और ख़ामोशी के..
कितने मतलब उगा लिए हैं..
सुलग रहा है तुम्हारे हाथों का
लम्स  मेरी हथेलियों में....
वो अजनबी शाम जिसने तुमको
मेरी निगाहों में रख दिया था..
मिली थी रस्ते के मोड़ पे कल...
तुम्हारे बारे में पूछती थी.....