गुरुवार, 8 जुलाई 2010

बारिश

सुबह से यूं हीं बरस रहा है रात का बादल 
दामन पत्तों का पेड़ों से भर आया है....
रात का साया खिड़की में से झाँक रहा है
बिस्तर में कुछ सीले लम्हे पड़े हुए हैं..

छत ने सर पर उठा लिया रो-रोकर घर को...
दीवारों का जिस्म भी सारा भीग गया है,
वक़्त सुबह से छतरी लेकर निकल पड़ा है....
मौसम के दस्तूर में बस्ती डूब गयी है..
राशन के पीपों ने भी दम तोड़ दिया है
छप्पर में भूखे चूल्हे की लाश पड़ी है...
सुबह से यूं ही बरस रहा है रात का बदल...
सुबह से यूं ही भूके बच्चे बिलख रहे हैं....

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!

Dankiya ने कहा…

dhanywad sameer ji..!!