सुबह से यूं हीं बरस रहा है रात का बादल
दामन पत्तों का पेड़ों से भर आया है....
रात का साया खिड़की में से झाँक रहा है
बिस्तर में कुछ सीले लम्हे पड़े हुए हैं..
छत ने सर पर उठा लिया रो-रोकर घर को...
दीवारों का जिस्म भी सारा भीग गया है,
वक़्त सुबह से छतरी लेकर निकल पड़ा है....
मौसम के दस्तूर में बस्ती डूब गयी है..
राशन के पीपों ने भी दम तोड़ दिया है
छप्पर में भूखे चूल्हे की लाश पड़ी है...
सुबह से यूं ही बरस रहा है रात का बदल...
सुबह से यूं ही भूके बच्चे बिलख रहे हैं....
2 टिप्पणियां:
बेहतरीन!
dhanywad sameer ji..!!
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