सुबह का चरवाहा सूरज फिर
किरण-किरण चौपाये लेकर
शाम ढले घर लौट रहा है,
हाथ में लेकर धूप की लाठी
ऊंचे टीले पर बैठा है
दूर कहीं तनहा छप्पर में
टीम-टीम करता लालटेन एक
गहरी नींद से जाग रहा है...
प्रेमचंद के धनिया-होरी
रीत रिवाजों के चूल्हे में हक के कंडे झोंक रहे हैं
बूढा और बीमार हाईवे नयी नवेली पगडण्डी से
घर का रस्ता पूछ रहा है................
सुबह का चरवाहा सूरज फिर
ओढ़ के रात का काला कम्बल
कल के सपने पीस रहा है
किरण किरण चौपाये लेकर सूरज फिर गोदान करेगा....
2 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा!
dhanywad sameer ji..!!
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