साये भी घुस गए हैं दरख्तों के जिस्म में..
ढँक जाएगी जमीन भी अपने ही साये से,
मेरे भी जिस्म में कोई साया है इन दिनों
साया, जो मेरी रूह को बेचैन किये है..
कब से खड़ा हूँ मैं इसी साये की धूप में...
भयानक ख्वाब से डरकर उठा हूँ रात के घर में
एक और दिन रख आया हूँ...तह करके अलमारी में...