शाम के झुटपुटे से ऊगीं हैं...
आज फिर चाँद हसरतें शायद...
आज फिर से मचलके बच्चे ने..
एडियों से ज़मीन खोदी है....
याद है छोटे-छोटे हाथों ने
अपने पंजों पे जब खड़े होकर,
एक गुलदान तोड़ डाला था...
आज भी पीली फ़्रोक में गुडिया
मेरे हाथों की पहुँच के बाहर
देखकर मुझको मुस्कुराती है....
.......शाम के झुटपुटे से ऊगीं हैं
आज फिर चाँद हसरतें शायद..
..आज फिर चाँद सिरा आया हूँ...
नीले आकाश के समंदर में....
2 टिप्पणियां:
are waah badi hi masoom kavita...bjole shabdo me
dhanywad dileep ji
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