
सुनो माँ....मैं तुम्ही से कह रहा हूँ ,सुन रही हो ना,
सभी ये कह रहे हैं तुम गयी हो छोड़कर मुझको,
मगर तुमको मैं अपने पास ही महसूस करता हूँ
मेरे सर पर अभी तक है वही आंचल दुआओं का
मैं जिसके साये में खुदको सदा महफूज़ पाता हूँ,
मैं जब भी सुबह को देहेरी के बाहर,पाँव रखता हूँ
तुम्हारी फिक्र में डूबी हुयी आवाज़ आती है...
`बहुत सर्दी है बेटा लौटकर जल्दी से घर आना,
मैं अब भी लौटता हूँ,देर से घर में थका हारा,
तुम अब भी जागती आँखों से मेरी राह तकती हो,
घुला है कान में अब तक तुम्हारी लोरियों का गुड
तुम्हारे हाथ का काजल,मेरी आँखों में रौशन है
तुम्हारी जागती आँखों तअले थपकी भ री नींदें,
तुम्हारी गोद का बिस्तर, तुम्हारी बांह का तकिया,
तुम्हारे हाथ का हर एक निवाला याद है मुझको...
सुबह से ताप रहा है जिस्म सारा सर से पावों तक,
मेरे माथे पे रक्खा है तुम्हारे लम्स (स्पर्श ) का फाहा..
सुलगता है अभी भी शाम घिरते ही,मेरे मन के..
किसी छोटे से कोने में तुम्हारी याद का चूल्हा...
तुम्हारे दर्द में किलकारियां मेरी सुलगती हैं..
मेरी आँखों से बहते हैं तुम्हारी आँख के आंसू
सुनो माँ मैं तुम्ही से कह रहा हूँ सुन रही हो ना....
बहुत सर्दी है माँ तुम लौटकर जल्दी से घर आना......