आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
अपने चेहरे के उजालों की तीलियाँ लेकर
लौट आयीं हैं यहाँ सर्द हवाएं फिर से
आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
धूप सुलगा के बैठ जाएँ हम..
ताप लें रूह में जमी यादें
सुखा लें आंसुओं की सीलन को..
आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में...
धूप सुलगा के बैठ जाएँ हम..
एक रिश्ते की आंच से शायद...
कोई नाराज़ दिन पिघल जाये....
9 टिप्पणियां:
एक रिश्ते की आंच से शायद...
कोई नाराज़ दिन पिघल जाये.
अच्छे नए बिम्ब प्रयोग किये हैं ...चेहरे के उजालों की तीलियां ...खूबसूरत
dhanywad sangeeta ji...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
charcha mein shamil karne ke liye,dhanywad sangeeta ji...
धूप सुलगा के बैठ जाएँ हम..
एक रिश्ते की आंच से शायद...
कोई नाराज़ दिन पिघल जाये....
nice very nace
pahli baar blog par aaye hai charcha manch ki mrharbani se ...man khush hua aapki rachna padhkar
dhanywad Nirjhar ji....
dhoop mein aansuon ki nami sukhaana,aur baaqi saare khayaal...bohot sundar hain
shukriya saanjh...
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