डाकिया
चिट्ठियां ज़िन्दगी के पते पर......
शनिवार, 4 सितंबर 2010
नन्ही मुन्नी एक सुबह को गोद उठाये
घर से उस दिन निकल पड़ा था... बहलाने को...
सारा दिन फिरते-फिरते बहला ना पाया..
शाम ढली तौ गोद से मेरी उतर के उसने
आसमान की थाली से मुट्ठी भर तारे झपट लिए थे...
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