तुम्हारी चुन्नी की कौड़ियाँ
मेरे ख्वाब में खडखड़ा रही हैं
तुम्हारी आँखों के कुछ सवाल
अब तलक नहीं हल किये हैं मैंने
वो चंद लम्हों की एक जागीर
मैंने दिल में बचा रखी है..
तुम्हारी मौजूदगी का एहसास,
मेरी आँखों में जड़ गया है..
तुम्हारी बातों के और ख़ामोशी के..
कितने मतलब उगा लिए हैं..
सुलग रहा है तुम्हारे हाथों का
लम्स मेरी हथेलियों में....
वो अजनबी शाम जिसने तुमको
मेरी निगाहों में रख दिया था..
मिली थी रस्ते के मोड़ पे कल...
तुम्हारे बारे में पूछती थी.....
2 टिप्पणियां:
वो अजनबी शाम जिसने तुमको
मेरी निगाहों में रख दिया था..
मिली थी रस्ते के मोड़ पे कल...
तुम्हारे बारे में पूछती थी.....
बेहतरीन ।
dhanywad asha ji...
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