साथ मेरे आज रस्ता चल रहा है,
कल इन्हीं पैरों तले दल-दल रहा है..
बांध ले फिर से उड़ानें पंख में तू,
फिर तेरा उड़ना किसी को खल रहा है..
लकड़ियाँ लेने गयी थी माँ ना लौटी..
पेट का चूल्हा तौ कबसे जल रहा है
आज तक वो सीख ना पाया बरसना
जिसकी आंखोंमें कोई बादल रहा है
गम ना कर होगी यहीं पर एक सुबह भी,
गर तेरा सूरज कहीं पे ढल रहा है..
होंसले चुगते हैं गर मेहनत का दाना
ये समझ लो ख्वाब कोई पल रहा है...
6 टिप्पणियां:
होंसले चुगते हैं गर मेहनत का दाना
ये समझ लो ख्वाब कोई पल रहा है.
-वाह!! बहुत खूब!!
dhanywad sameer ji..aapko evam aapke parijanon ko rakshabandhan ki dheron shubhkamnayen..
सुंदर अभिव्यक्ति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
dhanywad sangeeta ji..aapko bhi shubh rakshabandhan..
bohot bohot khoobsurat ghazal....too good.
wah dakiya ji kya chitthi padhai hai bahut khub bahut umda hai............!!!!
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