सोमवार, 9 अगस्त 2010

तमन्ना

बेखबर इस बात से सब,कौन सा रास्ता है किसका
बस चले जाते हैं थामे,हाथ में हसरत की झोली

छोड़ देने की ख़ुशी का है नहीं एहसास शायद
इसलिए ख्वाहिश, तमन्ना दर-ब- दर भटका रही है...

दिन फिसलता जा रहा है,मुट्ठियों से रेत जेसा
रात की कालिख निकलकर, आंसुओं में बह गयी है..
जाने कब से हम भी पत्थर की कतारों में खड़े हैं.....

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया!

Dankiya ने कहा…

dhanywad sameer ji....!!