गुरुवार, 19 मई 2011

गुड्डे-गुडिया की शादी

``अपने आँगन से बबलू के घर तक गुड्डे की बारात जाती,,,,
वहां गुड्डे-गुडिया की शादी होती.. मेनू में कच्ची कैरियां,,
पप्पू के घर का पोहा,जंगल जलेबी, शांताराम के ठेले वाली गटागट की गोलियां,,
और स्वीट डिश....??? अम्मा से आँख बचाकर घर से उड़ाया गुड.....
शादी के बाद गुड्डा बिना गुडिया के घर आ जाता......
और फिर शुरू हो जाती अगली बारात के मेनू की तयारी...

रविवार, 3 अप्रैल 2011

माँ से दौ रुपये आज फिर मांगे....
हमने सन्डे का मैच रक्खा है...
एक-इक रुपये का पर हेड कंट्रीब्युशन है..

सफ़ेद जूते गीली चाक से चमकाए हैं..
पटेल ग्राउंड में सुबह से गहमा गहमी है...
बाल्टी, मग्गों से छिडकाव हो रहा है वहां...
गुड्डू,पप्पू, कमल, तैयार हैं सब....
छोटू को बाँल लेने भेजा है..
विकेट हमारे हैं और पैड अगली टीम के हैं....

जीत कर शाम को घर लौट रहा है बचपन...
बड़ी मासूम सी ख़ुशी लेकर...
वो ख़ुशी आज फिर से लौटी है...

शनिवार, 19 मार्च 2011

होली...

यूकेलिप्टस से बाएं को मुडके... 
सफ़ेद कुरते में निकला था  दिन अकेला सा....
जेब में रख गुलाल की पुडिया,
गाल उसका छुआ था हौले से 
सजा दिया थे सभी रंग एक ही पल में
नीले, पीले, गुलाबी और हरे...
और एक रंग गिर गया था वहीँ...
घर के बरामदे की चौखट पर 
हो सके तौ वो रंग लौटा दो 
होली, बेरंग हुयी जाती है....

 
 

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

ग्रीटिंग

याद है जब एक साल तुम्हारा ग्रीटिंग मुझे नहीं पहुंचा था...
ग्रीटिंग जिसके भीतर मैं तुमको पढता था...
जिसके एक-एक हर्फ़ से अफ़साने गढ़ता था
बहुत पुरानी बात है वो भी नया साल था.......
कई दिनों तक रक्खी थीं उम्मीद होल्ड पर...
...आज भी बीता बरस सिराने जाता हूँ....
आज भी रूठा हुआ साल, हर साल मनाता हूँ........

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

निर्जला...

`पूरा दिन यूंही  गुज़ारा था निर्जला तुमने...
हंसके डिब्बे में रखी थी परमल...फेवरेट थी मेरी
मैंने ऑफिस में उड़ाई थी पराठों के संग,
तुमने एक दिन में ही जन्मों का सूखा काटा था...
औंधी दोपहरी कहीं टांग दी थी खूँटी से....
और फिर रात को पीले मकान की छत पर...
चाँद दो घंटे लेट था शायद..
चांदनी छानकर पिलाई थी...
पूरा दिन यूंही  गुज़ारा था निर्जला तुमने...
आज भी रक्खा है वो दिन...मेरे सिरहाने कहीं...

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

उठो...

उठो छोडो ये काली नींद का सूखा गरम बिस्तर
तुम्हारे सामने सारी उम्र मुंह बाये बैठी है..
उठो के वक़्त का फेरा तुम्हे ताने ना दे पाए,
उठो कितने ही रस्तों पर तुम्हारे पाँव पड़ने हैं, 
उठो अब भी तुम्हारी राह में बैठी है एक मंजिल,
उठो तुमको ही धोनी है लहू से तरबतर धरती,
उठो तुमको हो दुनिया में नए इन्सां बनाने हैं,
गिरा दो चाँद धरती पर, उठा लो हाथ में सूरज,
सितारे दिन में दिखला दो,उठालो हाथ में सूरज 
उठो आगे बढ़ो तुमको ही गिरतों को उठाना है,
उठो बिगड़ी हुयी हर चीज़ तुमको ही बनाना है,
उठो.. ताज़ा सुनहरी दिन तुम्हारी राह ताकता है....

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

बस स्टॉप

वो जो बस स्टॉप था न कोलेज का...
वो जहाँ टेम्पो रुका करते थे..
आजकल हो गया है वो एलीट
अब तौ स्टार बस ही रूकती है..
वो जो बस स्टॉप था न कोलेज का...
वक़्त अब भी वहां ठहरता है..
और वहीँ से चढ़ता है...
उधर से जब भी गुज़रता हूँ तौ ये लगता है...
जेसे के आखरी बस छूट गयी हो मेरी...